गाय है दूध देती है और गुजारा चल रहा है
गाय है दूध देती है और गुजारा चल रहा है
एक गाँव में एक दम्पति सुखी पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था, एक दिन की बात है उनके यहाँ एक साधू महात्मा जी आते है, दम्पति उन्हें आदरपूर्वक सम्मान के साथ उनका सादर सत्कार करते है, इसी बिच बातों बातों में महात्मा जी पुछ लेते है आपका जीवन निर्वाह के लिए गुजारा कैसा चल रहा है, दम्म्पत्ति बताता है महात्मन हमारे पास गाय है! दूध देती है! और हमारा गुजारा चल रहा है.
उसी रात महात्मा जी कुछ विचार करता है और रात में ही जब दम्पति सो जाते है तभी महात्मा, दम्पति के गाय को अपने साथ लेकर चले जाते है. जब दम्पति सुबह सोकर उठते है तो गाय को उसके स्थान पर नहीं पाकर व्यथित हो जाते है और महात्मा को बहुत बुरा भला कहने लग जाते है.
अब दम्पति को अपने जीवन निर्वाह के लिए कुछ न कुछ तो करना ही चाहिए सोचकर, दम्पति जहाँ रहते है उसके पीछे के जमीन पर सब्जी भाजी और खेती बाड़ी करने लग जाते है जिससे उन्हें काफी आमदनी होने लगती है और दम्पति की दिनचर्या पहले से काफी ज्यादा अच्छा व्यतीत होने लगता है.
कुछ दिन पश्चात् वही महात्मा फिर से वापस उनके घर आते है और दम्पति उस महात्मा को देखकर रोने लग जाते है और कहते है धन्य हो महात्मा आपका जो आपने हमें कमाई का नए रास्ते बताने के लिए अब हम पहले से ज्यादा सुखी और संपन्न है.
तभी महात्मा कहते है व्यक्ति को किसी एक चीज के
भरोसे नहीं बैठा रहना चाहिए, जैसे :- दीवाल पर छिपकली लटके रहता है और सोचता है की
यदि छिपकली दीवाल से हट गया तो दिवाल गिर जाएगा. जबकि ऐसा नहीं होता है. ठीक उसी
प्रकार से हमें अपने जीवन में कई सारे काम करते रहना चाहिए. किसी एक चीज के भरोसे बिल्कुल
भी बैठे नहीं रहना चाहिए.

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