श्राप
"श्राप" एक बेटी जो अब माँ बन गयी अपने संस्मरण व्यक्त करते हुए बता रही है.... बचपन में 'रामायण' से बहुत सारी अच्छी बातों के साथ एक बुरी बात भी हमलोगों ने सीख ली थी... "श्राप" देना... भाई-बहनों, दोस्तों को हमलोग जब-तब "श्राप" दे ही देते थे. हम खुद को किसी ऋषि-मुनि से कम थोड़े ना समझते थे. सबसे ज्यादा दिया जाने वाला श्राप था... 1 'जा, आज तेरी पिटाई हो' 2 'जा, तुझे अगले पूरे महीने जेब-खर्च ना मिले' और भी ना जाने कितने श्राप... और ये श्राप बाकायदा ऋषियों वाली मुद्रा में और एकदम धरती हिलने, आसमान गरजने वाली फीलिंग के साथ दिए जाते थे। सब कुछ ठीक ही चल रहा था जब तक कि माँ इस खेल में शामिल नहीं हुई... माँ तो हर बात पर "श्राप" देती थी. 1 उनकी बात न सुनो तो.. 'देखना एक दिन तरसोगे माँ के लिए.' 2 खाना न खाओ तो... 'देखना एक दिन कोई पूछेगा भी नहीं खाने के लिए.' 3 सुबह जल्दी न उठो तो.. 'देखना जब जिम्मेदारी आएगी सब नींद उड़ जाएगी.' 4 कोई काम न करो तो.. 'देखना एक दिन चक्करघिन्नी की तरह घूमेगी.' 5 उनस...