* कन्यादान नहीं करूंगा जाओ* मैं नहीं मानता इसे , क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं ,जिसको दान में दे दूँ ; मैं बांधता हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में , पति के साथ मिलकर निभाना तुम , मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा , आज से तुम्हारे दो घर ,जब जी चाहे आना तुम , जहाँ जा रही हो ,खूब प्यार बरसाना तुम , सब को अपना बनाना तुम ,पर कभी भी न मर मर के जीना ,न जी जी के मरना तुम , तुम अन्नपूर्णा , शक्ति , रति सब तुम , ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम , न तुम बेचारी , न अबला , खुद को असहाय कभी न समझना तुम , मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें , मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ , उसे बखूबी निभाना तुम ................. *एक नयी सोच एक नयी पहल*सभी बेटियां के लिए बोये जाते हैं बेटे.. पर उग जाती हैं बेटियाँ.. खाद पानी बेटों को.. पर लहराती हैं बेटियां. स्कूल जाते हैं बेटे.. पर पढ़ जाती हैं बेटियां.. मेहनत करते हैं बेटे.. पर अव्वल आती हैं बेटियां.. रुलाते हैं जब खूब बेटे. तब हंसाती हैं बेटियां. नाम करें न करें बेटे.. पर नाम कमाती हैं बेटियां.. जब दर्द देते हैं बेटे... तब मरहम लगाती हैं बेटियां.. छोड़ जाते हैं जब बेटे.. त...
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*यदि परिवार मे प्रेम है तो हानि किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकती* एक सुनार से लक्ष्मी जी रूठ गई । जाते वक्त बोली मैं जा रही हूँ... और... मेरी जगह नुकसान आ रहा है । तैयार हो जाओ। लेकिन मै तुम्हे अंतिम भेट जरूर देना चाहती हूँ। मांगो जो भी इच्छा हो। सुनार बहुत समझदार था। उसने 🙏 विनती की नुकसान आए तो आने दो । लेकिन उससे कहना की मेरे परिवार में आपसी प्रेम बना रहे। 🤔बस मेरी यही इच्छा है। लक्ष्मी जी ने तथास्तु कहा। ...
श्राप
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"श्राप" एक बेटी जो अब माँ बन गयी अपने संस्मरण व्यक्त करते हुए बता रही है.... बचपन में 'रामायण' से बहुत सारी अच्छी बातों के साथ एक बुरी बात भी हमलोगों ने सीख ली थी... "श्राप" देना... भाई-बहनों, दोस्तों को हमलोग जब-तब "श्राप" दे ही देते थे. हम खुद को किसी ऋषि-मुनि से कम थोड़े ना समझते थे. सबसे ज्यादा दिया जाने वाला श्राप था... 1 'जा, आज तेरी पिटाई हो' 2 'जा, तुझे अगले पूरे महीने जेब-खर्च ना मिले' और भी ना जाने कितने श्राप... और ये श्राप बाकायदा ऋषियों वाली मुद्रा में और एकदम धरती हिलने, आसमान गरजने वाली फीलिंग के साथ दिए जाते थे। सब कुछ ठीक ही चल रहा था जब तक कि माँ इस खेल में शामिल नहीं हुई... माँ तो हर बात पर "श्राप" देती थी. 1 उनकी बात न सुनो तो.. 'देखना एक दिन तरसोगे माँ के लिए.' 2 खाना न खाओ तो... 'देखना एक दिन कोई पूछेगा भी नहीं खाने के लिए.' 3 सुबह जल्दी न उठो तो.. 'देखना जब जिम्मेदारी आएगी सब नींद उड़ जाएगी.' 4 कोई काम न करो तो.. 'देखना एक दिन चक्करघिन्नी की तरह घूमेगी.' 5 उनस...
मृत्यु से भय कैसा
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|| मृत्यु से भय कैसा || 〰〰🌼🌼🌼〰〰 राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनातें हुए जब शुकदेव जी महाराज को छह दिन बीत गए और तक्षक ( सर्प ) के काटने से राजा परीक्षित की मृत्यु होने का एक दिन शेष रह गया, तब भी राजा परीछित का शोक और मृत्यु का भय दूर नही हुआ.....!!! अपने मरने की घड़ी निकट आती देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो रहा था। तब शुकदेव जी महाराज ने परीक्षित को एक कथा सुनानी आरंभ की। राजन ! बहुत समय पहले की बात है, एक राजा किसी जंगल में शिकार खेलने गया। संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल में जा पहुँचा। उसे रास्ता ढूंढते-ढूंढते रात्रि पड़ गई और भारी वर्षा पड़ने लगी। जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे। वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा। रात के समय में अंधेरा होने की वजह से उसे एक दीपक दिखाई दिया। ...